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मैं ये निश्चित रूप से नहीं कह सकता की ‘राई के पहाड़’ बनाने वाले का कसूर है या इन पहाड़ो पर चढ़ने की नाकाम कोशिश करने वाले का कसूर है! लेकिन किसी की अनदेखी का नतीजा है !!
कल मैं २३ भारतीय श्रमिको से मिला उन्होंने बताया की वो लोग 8 महीने पहले एजेंट को पैसे दे कर विदेश में नौकरी करने के लिए आये और यहाँ आकर किसी चुंगल में फस गये जहाँ उनके पासपोर्ट ले लिए गये और फिर ना उनका वर्क वीसा लगवाया गया, न कभी तनख्वा मिली, ना ठीक से खाना पीना मिला और ना रहने को अच्छी जगह मिली…..और वापिस अपने watan जाने को तरस रहे है!!
(अब भारतीय दूतवास उन्हें वापिस भारत भिजवाने की व्यवस्था कर रहा है)
असंख्य बार इस तरह की घटनाए अख़बार, टीवी आदि पर अपने के बाद भी लोग जागरूक नहीं होते…..और अपनी जान जोखिम में डाल देते है, आखिर अपने देश में जिन्दगी की अहमियत इतनी कम क्यों है ?? लोग ऐसा क्यों सोचते है की बहार जा कर वो आसानी से पैसा कमा लेंगे ?? भारत में बेरोजगारी बहुत है इस बात को नाकारा नहीं जा सकता, लेकिन ऐसा भी नहीं है की मेहनती व्यक्ति भूखा रह जाये….रोजगार ना मिले….और अपने परिवार का भरनपोषण न कर पाए!
मुझे लगता है की इन्हें आधारविहीन (अंधकारमय) सपनो की उड़न भरने से पहले इस बात का ख्याल कर लेना चाहिए उनका ये शोर्टकट कितनी बड़ी मुसीबत बन सकती है….जो लोग विदेश में कैदी की तरह फसे हो और वापिस लौटने में असफल हो….उनके घरवाले कैसे चैन की नींद सो सकते है, उनके बच्चे कैसे खुश रह सकते है! जब खुद मुसीबत में घर-परिवार मुसीबत में…….तो सब कुछ व्यर्थ है !!
”मेंन पावर सप्लाई’ करने वाले एजेंट को भी अपने लोगो के जीवन के साथ एसा खिलवाड़ नहीं करना चाहिए, पारदर्शिता रखनी चाहिए, झूठे ख्वाब नहीं देखने चाहिए, किसी की जान को जोखिम में नहीं डालना चाहिए !!
[सरकार को ऐसे ”मेंन पावर सप्लाई’ करने वाले एजेंटो के खिलाफ कड़ी कारवाही करनी चाहिए और जागरूकता बढाने के कुछ नए कदम उठाने चाहिए…….ताकि भोली-भाले एवं अत्यधिक होशियार (खुद को अत्यधिक होशियार समझने वाले पगले) देशवाशियो को इस खायी में गिरने से रोका जा सके]
रामेश्वर पूनियां
त्रिपोली
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