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आदरणीय एवं परम मित्रजनो,
जातीय आरक्षण की खिचड़ी तो सदियों से पकती आ रही है, समय समय पर लोग अपने प्राणों की आहुति देते हुए इस खिचड़ी को आंच देते आये है नेता लोगो ने भी सरकार का तख्ता पलटने और अपनी रोटी सेकने के लिए जातीय आरक्षण में सही समय पर पूरी रूचि दखाई है और भीड़ का नेतृत्व किया है!
लेकिन जब जब लोग आरक्षण की मांग को पूरा करवाने के लिए सरकारी सम्पति को नुकसान पहुचाते है और सार्वजानिक स्थानों पर तोड़फोड़ करते है या आग के हवाले कर देते है…..तो मेरा खून खोल उठता है और बहुत तकलीफ होती है!
कितने अफ़सोस की बात है ना……लोग अपनी जिद मनवाने के लिए इतने अंधे हो जाते है की सही और गलत के फर्क को समझने का विवेक भी खो बैठते है और अपनी ही सुविधा के साधनों की चिता जला देते है ……
यातायात रोकना, रेलवे स्टेशन को जला देना, रेलवे ट्रैक तोड़ देना, मुख्य राजमार्ग रोक कर आमजन को परेशान करना, मुसाफिरों को भूखे-प्यासे फुटपाथ पर समय काटने को मजबूर करना, सार्वजानिक सम्पति में आग लगा देना……..अपने स्वार्थ के लिए इस तरह की हरकते करना कैसा न्याय है? ये सब करते समय उपद्रवी समूह और उनके नेता ये क्यूँ नहीं सोचते की ये सारी सार्वजानिक सम्पति हमारी ही सुविधा के लिए है और हमारे ही कंधो पर इसका आर्थिक भार है……….
जब २००७ में राजस्थान के गुज्जर समाज के कुछ लोग भरतपुर, अलवर, धोलपुर आदि में अपने आरक्षण आन्दोलन को अंजाम दे रहे थे दुर्भाग्यवंश उन्ही दिनों मेंसे एक दिन मैं जयपुर से आगरा का बस से सफ़र कर रहा था और हमारी बस दौसा-भरतपुर के बीच रोक दी गयी, पूरी रात रोड पर गुजारी, ये सब करीब से देखने के बाद महसूस हुआ की ये आम जन के साथ कितना बड़ा अन्याय है, जो अपने ही लोग कर रहे है!
मुझे नहीं लगता की उपद्रव और दंगे-फसाद के दबाव में आकर किसी को भी आरक्षण देना सरकार का उचित कदम है, ये तो सिर्फ भविष्य के लिए दंगे-फसाद को बढ़ावा देना प्रतीत होता है आपकी क्या राय है ?
आरक्षण का मुद्दा कब से ज्वलित है ये तो हम सब जानते है इसलिए जब तक इसको जड़ से उखाड़ कर पूरी तरह दफना नहीं देते तब तक इंसानियत का बंटवारा होता रहेगा और आरक्षण को लेकर वाद-विवाद, सभाए, सम्मलेन, दंगे-फसाद और आन्दोलन होते रहेंगे और हमारी एकता और अखंडता पर आक्रमण जारी रहेगा!
मेरे विचारोअनुसार तो आरक्षण सिस्टम को संशोधित कर जातीय आरक्षण को ख़त्म कर देना चाहिए, पिछड़ापन की पेमाइश जातीय आधार पर नहीं होनी चाहिए, कोई भी ‘जाति’ पूर्णरूप से ना तो पिछड़ी है और ना ही सर्वसम्पन है !
फिर ये आरक्षण तो आधारहीन है!
क्या इस जातीय आरक्षण को समाप्त कर सकने का कोई विकल्प है ?
कृपया अपने विचार रखे !
Regards
Rameshwar Pooniya
Tripoli
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